Tuesday 3 May 2016

कैंडललाइट लव


ऋषिकेश और दिल्ली में सबसे बड़ा फर्क यह था कि यहाँ रात में आकाश में हजारों तारे दिखते थे। दिल्ली के धुएँ में अगर रात में चाँद भी दिख जाये तो एक बड़ी बात थी। हम सभी अपनी कंपनी की ओर से यहाँ एक कैंप में आए हुये थे। तीन दिनों का कैंप था जिसमें हम उस तरह की ज़िंदगी जीने की कोशिश कर रहे थे जैसी ज़िंदगी पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वज जिया करते थे। न बिजली, न टीवी, न इंटरनेट और न भागदौड़। हाँ, पर हमारे पास मोबाइल फोन था। आधुनिक ज़िंदगी का एकमात्र सबूत जो हमारी जेब में था।
रात के बारह बज गए थे। सभी लोग कैंप फायर के चारों ओर गाने-बजाने में तल्लीन थे। शराब का नशा ज़ोर पर था, और किसी को इस बात की खबर नहीं थी कि आस-पास क्या हो रहा था। बस जिसके जो मन में आए, वो गाये जा रहा था। मैंने शराब नहीं पी थी। शराब पीकर मैं अपना होश खोना नहीं चाहता था। क्योंकि मुझे किसी चीज का इंतज़ार था। फिर अचानक मेरा फोन बजा। एक SMS आया था। Come” बस इतना ही लिखा था।
मैंने आस-पास देखा। सभी टुल्ल थे। माधवी एक तरफ लुढ़की पड़ी थी। माधवी और तृष्णा एक ही टेंट शेयर कर रहे थे। माधवी को देखकर लग रहा था कि अब वो सुबह में ही अपने टेंट लौट पाएगी। कोई उसे उठाकर उसके टेंट में ले जाये ऐसी हालत में कोई नहीं था। मैं चुपचाप उठा और चल पड़ा।
चारों तरफ अंधकार था। अपने छोटे से मोबाइल के टॉर्च की रोशनी में मैं पेड़-पौधों के बीच रास्ता तलाशते हुये कोने के टेंट की ओर बढ़ा। वहाँ कुल मिलाकर दस टेंट थे जो कंपनी की लड़कियों के लिए डाले गए थे। लड़कों का टेंट अलग था, तकरीबन 100 मीटर दूर।
मैं तृष्णा के टेंट की ओर बढ़ा। मैंने कपड़े का दरवाजा हटाया, और हटाते ही सामने तृष्णा पर नज़र पड़ी। एक मोमबत्ती जल रही थी। उसकी रोशनी में उसका चेहरा दिख रहा था। घुँघराले बालों के बीच उसका गोरा चेहरा चमक रहा था। वो बिलकुल शांत बैठी थी। कहीं कोई भी उत्तेजना नहीं दिख रही थी। मैं जाकर उसके पास बैठ गया।
बिना एक पल बर्बाद किए, तृष्णा ने अपनी जीभ से अपने होठों को गीला किया और और मेरी गर्दन को हल्के से चूम लिया। फिर अपने दाँत गड़ा दिये। वो कंपनी में नोटिस पीरियड में थी, और ये उसका आखिरी सप्ताह था। अभी तीन दिन पहले उसने मुझे अपने घर डिनर पर बुलाया था। डिनर के एक घंटे बाद मैं उसके पूरी शरीर पर मसाज दे रहा था। उसके कसे हुये स्तनों पर बेबी ऑइल लगाते समय मुझे लगा था मैं जन्नत में पहुँच गया था। उसके दांतों से जैसे ही मेरी गर्दन पर हल्का सा दर्द हुआ, मुझे उसके वो चिकने और ठोस स्तन याद आ गए। यह सोचकर मेरा दंड खड़ा हो गया कि अभी कुछ ही पलों में मैं उनकी स्तनों को हाथों में लेकर मसल रहा हुंगा।
उसने बिलकुल भी वक़्त बर्बाद नहीं किया। तुरंत मेरी टी-शर्ट को उतारा और मेरी दोनों छातियों को चूमने लगी और हल्के-हल्के से काटने लगी। मैंने उसकी बालों में अपने हाथों को फंसाया और उनमें अपनी उँगलियाँ रगड़ने लगा। मैं उसके कपाल को उँगलियों से मसाज करने लगा।
सुनो। हमारे पास टाइम ज़्यादा नहीं है। कोई आ गया तो?’ उसने धीमे से मेरे कानों में फुसफुसाते हुये कहा।
क्या करना है?’ मैंने कहा। तेज़ साँसों से मेरी आवाज़ उखड़ रही थी। मुझे आश्चर्य हो रहा थी कि उसकी आवाज़ इतनी शांत क्यों थी। ये शांत आवाज़ मुझे और भी पागल कर रही थी।
‘Give me your best,” उसने कहा।
दोनों को पता था कि मेरा बेस्ट क्या है। मैंने उसे बताया था। बताते समय उसका चेहरा लाल हो गया था, और ऐसा लग रहा था कि वो टेबल के नीचे अपनी जांघों को एक-दूसरे से रगड़ रही थी। फिर उसके अपना दायाँ पैर बढ़ाकर अपने अंगूठे से मेरे पैर को दबा दिया था।
मुझे भी लगा कि वक़्त बर्बाद करने से क्या फायदा है। मैंने मुट्ठी मारते समय न जाने कितनी बार अपने मन की स्क्रीन पर उसे अपना बेस्ट देते हुये देखा था। आज उस चीज को वास्तव में करने का मौका आया था।

मैंने एक के ऊपर दूसरा तकिया रखा, फिर तृष्णा को उस पर कंधे के सहारे लिटाया। उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। वो उस बच्चे की तरह इंतज़ार कर रही थी जिसका बर्थड़े के गिफ्ट का पैकेट खुलने वाला है।
उसने पतले कॉटन के टी-शर्ट के नीचे गहरे रंग का पायजामा पहन रखा था। मैंने उसके पैरों को हल्का सा फैलाया, और उसके घुटनों के बीच बैठ गया जैसे वज्रासन में बैठते हैं। फिर उसकी टी-शर्ट के निचले हिस्से को ऊपर उठाया, जिसके नीचे दूधिया रंग की उसकी कमर और पेट दिखने लगे। मोमबत्ती की रोशनी में कुछ साफ नहीं दिख रहा था जिससे मौके की मादकता और बढ़ती जा रही थी। मैंने वहाँ अपनी नाक सटाई, और उसे हल्के-हल्के सूंघने लगा। अपने दोनों हाथों से मैंने उसकी कमर को पकड़ रखा था।
मैंने यह कई बार देखा है। लड़की की त्वचा को सूँघो तो वो दस मिनट बीतते-बीतते पागल सी हो जाती है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ, लेकिन सिर्फ दो मिनट में हुआ। तृष्णा वैसे लोगों में थी जिन्हें उबलने में ज़्यादा टाइम नहीं लगता। उसने अपनी जांघों को मेरे कंधों पर रखा, और अपनी एड़ियों से मेरे पीठ को रगड़ने लगी। साथ ही उसके मुंह से कराहने की आवाज़ आने लगी।

मैंने अपनी जीभ निकाली और बड़े आराम से उसकी कमर के उस हिस्से पर फिराने लगा जहां पाजामे का नाड़ा बंधा होता है। मेरी जीभ नाड़े से सटकर उसकी मुलायम त्वचा को चाकू की नोंक की तरह गड़ा रही थी। तृष्णा यह ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसने अपनी टांगों से मुझे थोड़ा पीछे धकेला, और अपना पायजामा उतारकर बगल में फेंक दिया। उसके बाद मुझे वापस अपनी जांघों के बीच ले लिया।
पर मुझे कोई हड़बड़ी नहीं थी। कुछ देने से पहले तड़पाना अच्छा लगता है। तड़प से उस चीज के मिलने का आनंद बढ़ जाता है। मैं उसकी जांघों के अंदर का हिस्सा चूमने लगा। धीरे-धीरे, फिर तेज़ी से। अपने दांतों से उन्हें हल्का-हल्का नोचने लगा। इन सब चीजों के दौरान मैंने एक बात का पूरा ध्यान रखा। वो ये कि मैंने उसके गुलाब को बिलकुल नहीं छूया। मेरी नाक में बड़ी तेज़ से गंध आने लगी थी। वो गंध शराब से भी ज़्यादा तेज़ थी। तृष्णा के गुलाब से रस निकलने लगा था। अब वो उस स्थिति में थी जहां वो चाहकर भी मुझे किसी चीज के लिए इंकार नहीं कर सकती थी। मैं उसके साथ जो चाहे वो करता, लेकिन मुझे वो करना था जिसका मैंने वादा किया था।
जैसे-जैसे मैं उसकी जांघों के अंदरूनी हिस्सों को दांतों से नोंचता जा रहा था, उसका पागलपन बढ़ता जा रहा था। वो कराह रही थी। सुनो, मैं चिल्ला दूँगी,’ उसने लगभग चिल्लाते हुये कहा।
चिल्लाओ, फिर कोई तुम्हें बचाने पहुँच जाएगा,’ मैंने आँखें मारते हुये कहा।
बदमाश! मैं नहीं चिल्लाऊँगी। मैं नहीं चाहती मुझे कोई बचाए,” उसने भी शरारत के टोन में कहा।
तो फिर चुपचाप रहो, और मज़े लो,’ ऐसा कहते हुये मैंने उसकी पैंटी खींचकर जमीन पर फेंक दी। मोमबत्ती की रोशनी में उसका गुलाब वैसा ही दिख रहा था जैसे सुबह की पहली किरण पड़ते ही ओस से भींगा कोई भी फूल दिखता है। उससे सोंधी-सोंधी सी खुशबू आ रही थी।
वो थोड़ी शर्मा गई, और गर्दन घुमाकर कोने में देखने लगी। मैंने उसका चेहरा पकड़कर अपनी तरफ किया और उसके होठों को चूम लिया। उसकी सांसें ऐसे तेज़ चल रही थीं मानो वो दो मील दौड़कर आई हो। चेहरे पर नयी चमक आ गई थी, और होठों पर पागलपन था। अब मुझसे और इंतज़ार मत कराओ,’ वो थोड़ी झिझक से बोली।

कराऊंगा तो क्या कर लोगी?’ मैंने छेड़ा।
तुम्हारी जान ले लूँगी,’ उसने हल्के गुस्से से कहा।
ले लो,’ मैंने कहा।
‘Just finish your business, motherfucker!’ वो फुफकारते हुये बोली।
‘I wish I could fuck your mother too. Does she taste good?’ मैंने कहा। बारूद जितना ज़्यादा होता है, विस्फोट उतना बड़ा होता है।
मैंने अपनी एक उंगली उसके गुलाब में थोड़ी सी डाल दी थी, और अंगूठे से आस-पास के हिस्से को गुदगुदा रहा था।
‘If you perform your job well, I won’t get you my mother. But…’ उसने तल्खी से कहा।
‘But! But क्या?’ मैंने और छेड़ा।
I can get you my cousin. You can do us both,’ उसने चारा फेंका।
बुरा आइडिया नहीं है,’ मैंने मुस्कुराकर कहा।
मैं अपना सिर उसकी जांघों के बीच ले गया। फिर उसके गुलाब के किनाने-किनारे जीभ फिराने लगा। ऊपर-नीच, ऊपर-नीचे। उसने आँखें बंद कर लीं और खो गई। अब उसे थोड़ा भी इंतज़ार करना सही नहीं था। तेल खौल रहा था, पूरियाँ डालने का सही समय था। मैं अपनी जीभ को उसके गुलाब और नितंब के छेद के बीच वाले हिस्से पर ले गया, फिर पूरी जीभ निकालकर चाटते हुये उसे ऊपर उसकी नाभी तक ले आया। उसके मुंह से सिसकारी निकल गई। इस तरह से मैंने अपनी जीभ से  उसके गुलाब की बाहरी पंखुड़ियों को अपने मुंह के रस से भिंगा डाला।
जब उसके पैर कांपने लगे तब मैंने देखा उसका मोती खिल आया है। मोती जिसे इंग्लिश में clitoris कहते हैं। मैं अपनी जीभ की नोंक से मोती की परिधि के हिस्से को गोल-गोल छूने लगा। तृष्णा के लिए अब अपनी आवाज़ को रोकना मुश्किल हो गया था। वो दबी आवाज़ में आह आह किए जा रही थी।  मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। उंसकी आँखें बंद थीं, और वो न जाने कहाँ खोई हुई थी। सिर के ठीक पीछे मोमबत्ती जल रही थी। टेंट में कहीं से हवा घुस रही थी जिससे वो लौ धीरे-धीरे हिल रही थी।
मुझे पता नहीं ये कब हुआ और कैसे हुआ, लेकिन मेरे जीभ ने मोमबत्ती की लौ से दोस्ती कर ली। जब लौ बाईं और झुकती तो मेरी जीभ खुद--खुद तृष्णा के गुलाब की बाईं पंखुड़ी को छू जाती। जब लौ सीधी खड़ी हो जाती तब मेरे जीभ की नोंक नीच से ऊपर उसके गुलाब की सैर करती मानो चाक से बोर्ड पर लाइनखींच रही हो। जब लौ तेज़ी से फड़कने लगती तो मेरे जीभ भी तेज़ी से इधर-उधर पंखुड़ियों पर धावा बोल देती।
            मेरी जीभ मानो उस मोमबती की लौ की छाया बन गयी थी। वो लौ की एक-एक हरकत को बड़ी शिद्दत से नकल कर रही थी। अब तक तो मैं तृष्णा को आनंद देने की कोशिश कर रहा था और अपने अनुभव से सीखी टेक्निक आजमा रहा था। लेकिन अब मैंने अपनी जीभ को अपने कंट्रोल से बाहर छोड़ दिया था जैसे किसी मांझी ने अपनी नाव को हवा के रुख के भरोसे छोड़ दिया हो।
            इस थिरकती लौ के साथ मेरी जीभ भी तृष्णा के गुलाब पर नाचती रही। सारी पंखुड़ियाँ फूल गई थीं, और आस-पास के नन्हें बाल मानो बारिश में भींग गए थे। उसकी मुलायम जांघें मेरे सिर के दोनों ओर मसाज किए जा रही थीं। वो अपने हाथों से मेरे कपाल को आते की तरह गूँथने की पुरजोर जद्दोजहद कर रही थी।
पर यह किस्सा ज़्यादा देर न चला। अचानक तृष्णा की जांघें और पीठ अकड़ गई, और उसके पूरे शरीर में तनाव फैल गया। मैं समझ गया कि अब वो विस्फोट होने वाला है। अगले ही पल तृष्णा ज़ोर से चीखी, उसके गुलाब से एक पतली और तेज़ फुहार निकली, और लगा कि अब उसके टुकड़े-टुकड़े होकर चारों ओर पहाड़ियों पर बिखर जाएँगे। फिर पंद्रह सेकंड के उस भूचाल के बाद उसका शरीर ऐसे शांत हो गया जैसे वो बेहोश हो गयी हो।
कुछ पलों बाद उसने मेरे सिर को ऊपर खींचा और मुझे बड़े प्यार से अपनी बाँहों में भर लिया।
मुझे याद था कि हम उसके बेडरूम में नहीं, कंपनी के टेंट में लेते हैं। अगर किसी ने देख लिया तो थोड़ी बदनामी हो जाएगी और मेरी जॉब को भी नुकसान हो सकता है।
मैं उठकर अपने कपड़े पहनने लगा। फिर उसके सिर को हलका सा सहलाया और निकलने के लिए दरवाजे की ओर मुड़ा।
उसने अपने हाथ से मेरी कलाई को पकड़ लिया।
तुमने पिछली बार भी सिर्फ दिया था। आज भी सिर्फ दिया है। तुम्हें तो कुछ नहीं मिला,’ उसने कहा।
ऐसा नहीं है। मुझे भी मिला है। I have enjoyed it as much as you,’ मैंने कहा।
अगली बार दानवीर कर्ण बनने से काम नहीं चलेगा। Next time I will give you everything I have. I won’t stop myself. Promise!’ उसने कहा।
मैं मुस्कुराया। वो तेज़ी से उठी और उसने बड़े ज़ोर से मेरे होठों को चूम लिया।
मैं टेंट से बाहर निकाल आया। आस-पास देखने लगा कि कोई है तो नहीं। दूर से लोगों के गाने की आवाज़ आ रही थी।
अंदर टेंट में तृष्णा के मोबाइल बजने की आवाज़ आई।
फिर तृष्णा बात करने लगी,Hi....what's up! Yeah, I'm missing you. Thank God, you called up.’

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