ज़िंदगी एक ऐसी चिड़िया की तरह है जो कभी किसी शाखा पर आराम नहीं करती, कभी घोंसला नहीं बनाती। यह तो बस उड़ती चली जाती है। विक्रांत अपना सामान
समेटते समय यह महसूस कर रहा था। पाँच साल पहले वो इस शहर में कांतिदास महाविद्यालय
में दाखिला लेने पहली बार आया था। इन पाँच सालों के एक-एक दिन का उसने पूरा स्वाद
चखा था। जमकर पढ़ाई की थी, जमकर दोस्त बनाए थे, और जमकर सखियाँ
बनाई थीं।
यहाँ लड़कियां थोड़ी उन्मुक्त स्वभाव की थीं, और विक्रांत में कुछ ऐसा खास था कि वो उसकी
ओर खिंची चली आती थीं। विक्रांत देखने में कुछ खास नहीं था,
लेकिन उसके चेहरे पर एक शरीफाना अंदाज़ था। लड़कियां उसके साथ काफी सहज और सुरक्षित
महसूस करती थीं। उसके सामने मिनट भर में ऐसे खुल जाती थीं जैसे वो एक-दूसरे को
सालों से जानते हों।
एक बार विक्रांत अपनी दोस्त शैलजा के साथ मार्केट में घूम रहा था। तभी बायोलॉजी
डिपार्टमेंट की सुकन्या उनसे आ टकराई। सुकन्या और शैलजा में थोड़ी-बहुत जान-पहचान
थी, इसलिए
हाय-हैलो हुई। फिर विक्रांत और सुकन्या में बात शुरू हो गई। दोनों में लगभग दस
मिनट तक यह चर्चा होती रही कि कॉलेज की कैंटीन में अगर कॉफी सर्व करना शुरू करें
तो मज़ा आ जाये। शैलजा उन दोनों को बड़ी-बड़ी आँखों से देखती रही। सुकन्या के जाने के
बाद शैलजा ने विक्रांत से पूछा, ‘यार, मुझे पता नहीं था तुम सुकन्या को जानते हो।‘
विक्रांत ने भौंहें सिकोडकर कहा, ‘मैं उसे नहीं जानता। एक-दो बार आँखें
मिली हैं। पर मैंने उससे पहली बार बात की है।‘
शैलजा के मुंह से हल्की सी चीख सी निकाल गयी, ‘What! तुम दोनों
पहली बार बात कर रहे थे। लग तो ऐसे रहा था जैसे कई बार मिल चुके हो।‘
विक्रांत ने कुछ जवाब नहीं दिया। शैलजा ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। लड़कियां
एक पल में पहचान जाती हैं कि किन लड़कों का एटैन्शन पाने के लिए उन्हें बाकी
लड़कियों से काफी कॉम्पटिशन करना पड़ेगा। विक्रांत वैसे गिने-चुने लड़कों में से था
जिन्हें लड़कियों के पास जाना नहीं पड़ता; लड़कियां उनके पास कोई न कोई बहाना बनाकर आती हैं।
आश्चर्य की बात थी कि विक्रांत में ऐसा कुछ दिखता नहीं था जिसके कारण लड़कियां
उसके पास आयें। दिखने में साधारण था, किताबों में डूबा रहता था, लड़कियों पर
एक पैसा खर्च नहीं करता था, उसके पास बाइक या गिटार भी नहीं
था जो लड़कियां पटाने का अद्भुत अस्त्र माना जाता है। शैलजा खुद भी नहीं समझ पाती
थी कि वो उसे इतना पसंद क्यों करती है। वो खुद देखने में काफी अच्छी थी और उसके
पीछे पड़ने वाले लड़कों की कतार काफी लंबी थी। अपने बैच की सबसे अच्छी स्टूडेंट थी।
उसके साथ कोई लड़का थोड़ा वक़्त बिता ले तो उस लड़के की अपने दोस्तों में इज्ज़त बढ़
जाती थी। लेकिन विक्रांत के साथ मामला उल्टा था। विक्रांत की अच्छी दोस्त होने के
कारण लड़कियां उसे जलती निगाहों से देखती थीं, और हॉस्टल में
गप मारते समय किसी न किसी बहाने से उसके बारे में कुछ न कुछ जरूर पूछती थीं।
शैलजा को ये भी पता था कि विक्रांत के फ्लॅट में आने वाली लड़कियां उससे सिर्फ
गप मारने नहीं आतीं। जिन लड़कियों के पीछे चक्कर लगाते हुये लड़के हॉस्टल के आस-पास
मँडराते रहे थे, वो ही
लड़कियां कुछ पूछने या पढ़ाई के बहाने विक्रांत के फ्लॅट में अकेले आना चाहती थीं। एक
वाकया तो उसने अपनी आँखों से देखा था। विक्रांत की एक साल जूनियर स्वाती उससे बात
कर रही थी, ‘विक्रांत, आप हर बार मुझे टाल जाते हो। अगर मैं इस बार फेल हुई तो डिपार्टमेंट हेड
को बोल दूँगी कि आप इसके लिए ज़िम्मेवार हो।‘
विक्रांत ने मुस्कुराकर कहा, ‘अरे बाबा! मुझे क्यों फांसी पर चढ़ाना
चाहती हो? यहाँ जब भी क्लास खाली हो,
डिपार्टमेंट में मुझसे वो चैप्टर आकर पढ़ लो।‘
स्वाती ने नखरे दिखाये, ‘यहाँ बहुत शोरगुल होता है। मेरा हॉस्टल
आपके फ्लॅट के बगल में ही है। शाम में आ जाऊँ? आपको
प्रोब्लेम तो नहीं है?’
विक्रांत ने कहा, ‘नहीं, प्रोब्लेम क्यों होगी? आ
जाओ। चाहो तो किसी क्लासमेट को भी ले आओ।‘
स्वाती ऐसे खुश हुई जैसे किसी भूखी को चिकन पिज्जा मिल गया हो। उसकी खुशी
देखकर शैलजा चिढ़ सी गई। उसे इस बात में बिलकुल भी संदेह नहीं था कि वो कमीनी
विक्रांत से सिर्फ पढ़ाई नहीं करेगी। आजकल लड़कियां कितनी फ्रैंक हो गई हैं। या फिर
ये कहो, वो
विक्रांत के साथ इतना फ्रैंक महसूस करती हैं। वो खुद भी तो विक्रांत के साथ पूरी
फ्रैंक है। इतनी फ्रैंक है कि बिना किसी रिश्ते के उसके साथ न जाने कितनी बार
अपने-आपको उसके हवाले कर चुकी है। इसके पहले भी वो दो लड़कों के साथ शारीरिक रूप से
जुड़ चुकी थी, लेकिन वो दोनों उसे डेट कर रहे थे। कभी-कभी उसे
लगता था कि वो सेक्स के माध्यम से उसे अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही है। लेकिन उसे
इतना समझ तो आ गया था कि विक्रांत सेक्स को एंजॉय करता है लेकिन सेक्स उसकी ज़रूरत
नहीं है। कोई भी लड़की सेक्स का चारा डालकर उसे अपने बस में नहीं कर सकती।
ऐसी न जाने कितनी शैलजा और सुकन्याएं विक्रांत के साथ वक़्त बिता चुकी थीं। आलम
यह था कि कई लड़के अपनी गर्लफ्रेंड को विक्रांत से मिलाते नहीं थे। विक्रांत के
बारे में कई उल्टी-सीधी बातें उन्हें बताते थे। विक्रांत का कैरक्टर ठीक नहीं है; वो लड्कीबाज़ है, सेक्स का भूखा है; और भी पता नहीं क्या क्या! पर ये
बातें सुनकर उन गर्लफ्रेंड्स में जिज्ञासा जाग जाती थी। और वो वास्तव में वैसा
होता तो यूनिवरसिटी की खूबसूरत लड़कियां हर शाम उसके साथ कॉफी नहीं पी रही होतीं, उसके यहाँ चौपाल बिठाने नहीं जातीं। आश्चर्य की बात यह कि आज तक किसी
लड़की ने उसके बारे में कभी नेगेटिव नहीं कहा। सिर्फ लड़कों को ही चिढ़ मचती थी।
वैसे भी जिस लड़की के साथ एक भी खूबसूरत लड़की हो, उसमें बाकी लड़कियों की दिलचस्पी अपने-आप बढ़
जाती है। यही सिद्धान्त विक्रांत के साथ काम करता था। उसके फ्रेंड सर्कल में क्यूट
लड़कियों की संख्या जितनी बढ़ती गई, बाकी लड़कियों की दिलचस्पी
उसमें और भी गहराती गयी।
पर आज यह सुनहरा चैप्टर खत्म हो रहा था। कल विक्रांत इस कॉलेज को छोडकर हमेशा
हमेशा के लिए जा रहा था। उसका एक टॉप एमबीए कॉलेज में चयन हो गया था, और उसे एक हफ्ते के अंदर जॉइन करना
था। उसके बाद दो साल तक तो उसे सांस लेने की भी फुर्सत नहीं होगी। उसने अपने काफी
सारे सामान की पैकिंग कर ली थी। किताबों की पैकिंग करनी बाकी थी।
तभी दरवाजे पर हल्की सी आवाज़ आई ‘विक्रांत’। विक्रांत ने दरवाजा खोला।
वहाँ कृति शर्मा खड़ी थी।
‘अरे, कृति! तुम यहाँ?’ विक्रांत ने कहा।
‘हाँ, तुम्हारी एक बुक मेरे पास बहुत दिनों से थी। मैंने सुना कल जा रहे हो।
तुम्हें तो याद भी नहीं होगा कि तुमने मुझे कोई बुक दी थी।‘
दो सेकंड सोचने के बाद विक्रांत ने कहा, ‘अच्छा! कौन सी बुक?’
कृति ने ओ. हेनरी की कहानियों का कलेक्शन निकाला और विक्रांत को थमा दिया। ‘ओह, ये किताब!
तुम्हारे पास थी। मैं तो भूल ही गया था,’ विक्रांत ने कहा।
‘हाँ, तुमने न जाने किस-किस को क्या-क्या दिया है। कहाँ से याद रहेगा?’ कृति ने बोला। अगले ही पल उसे लगा कि वो क्या बोल गयी। कहीं बुरा न मान
जाये।
‘हाँ
यार, मुझे रेकॉर्ड रखना चाहिए कि किस को कौन सी बुक दी है।
तुमने तो शराफत से बुक लौटा दी है। कई लोग अपना समझकर रख लेते हैं,’ विक्रांत उस किताब के पन्नों को पलट रहा था। वो अपनी किसी भी पुरानी
किताब को खोलते समय यह देखता था कि उसने किस-किस हिस्से को अंडरलाइन किया है।
‘तुम्हारी
दो-तीन बुक्स गायब भी हो जाएँ तो क्या फर्क पड़ता है। सुना है तुम्हारा कलेक्शन
काफी अच्छा है।‘
‘हाँ, कुछ किताबें हैं मेरे पास। पर तुम्हें कैसे पता?’
‘हॉस्टल
में किसे नहीं पता? शैलजा ने बताया है।‘
‘ओह, अच्छा! अंदर आ जाओ। अगर देखना चाहो तो।‘
‘कोई
प्रोब्लेम तो नहीं है?’
‘नहीं, प्रोब्लेम क्यों होगी। हाँ, सामान थोड़ा बिखरा पड़ा
है। चाय बनाकर नहीं पिला पाऊँगा।‘
‘नहीं, मैं तो बस दो मिनट रुकूँगी, एक नज़र देखना है कि
क्या-क्या पढ़ते हो तुम?’
‘हाँ, हाँ। बिलकुल आ जाओ।‘
कृति विक्रांत के कमरे में आई तो थोड़ी चौंक गई। ये लड़का सिर्फ किताबें पढ़ता
रहता है क्या? दो
बुक शेल्फ किताबों से भरी हुई थीं। विक्रांत ने गलत कहा था। कोई भी सामान बिखरा
हुआ नहीं था। पैकिंग किया हुआ सामान कोने में काफी करीने से रखा हुआ था। दीवारों
पर उसकी बनाई दो पेंटिंग्स सजी हुई थीं। पता नहीं उस कमरे में क्या था कि अचानक
कृति काफी रिलैक्स फील करने लगी। जैसे वो अपने घर में आ गयी हो। वो समझ गयी इस
कमरे में उसके पहले एक दर्जन लड़कियां क्यों आ चुकी हैं। उसे महसूस होने लगा था कि
ये उसका अपना घर है और विक्रांत उसका गेस्ट
है। इतना आराम और बेतकल्लुफ़ी तो वो अपने बोयफ्रेंड के यहाँ भी महसूस नहीं करती थी।
दरअसल वो वहाँ जाने से पहले दो बार सोचती थी। उसके घुसते ही उसका माशूक बिना दो पल
देरी किए उसे नोचने के लिए दौड़ता था। मूड बनने से पहले मूड का सत्यानाश कर डालता
था।
विक्रांत अपने बैग में कपड़ों को सजाने लगा। कृति एक बूक शेल्फ के पास गयी, और किताबों को ध्यान से देखने लगी।
कई आर्टिस्ट्स की बायोग्राफ़ि थी, कई उपन्यास रखे हुये थे, फ़िलॉसफ़ि से संबन्धित कई किताबें थीं। तब उसकी नज़र फिसलते-फिसलते दायें
कोने में पड़ीं। मोटी सी चमकीले कवर वाली कामसूत्र एक रानी की तरह विराजमान थी। बगल
में lovemaking पर एक और किताब थी। कृति की नज़र तो वहाँ जाकर
चिपक गई। विक्रांत भी देख रहा था कि कृति का ध्यान किधर है।
‘तुम
काफी इंट्रेस्टिंग किताबें पढ़ते हो,’ कृति ने बिना मुड़े हुये
कहा।
‘हाँ, जिन चीजों में इंटरेस्ट हो उन पर किताबें पढ़ता हूँ।‘
‘मैंने
आज तक किसी के पास इतनी वाइड रेंज की किताबें नहीं देखीं।‘
‘ओके,’ विक्रांत ने कहा। वो उठा और कृति के बगल में जाकर खड़ा हो गया। ‘तुम चाहो तो किताब निकालकर देख सकती हो।‘
कृति ने कामसूत्र निकाली और उसके पन्ने पलटने लगी। उसे खुद विश्वास नहीं हो
रहा था कि किसी लड़के के सामने वो इतनी सहजता से कामसूत्र की तसवीरों को देख रही
है। अपने बोयफ्रेंड के सामने भी ऐसे नहीं कर सकती थी। उसे लगता था कि सेक्स में
इंटरेस्ट दिखाने से कोई उसे चरित्रहीन न समझ ले, उसके बारे में उल्टी-सीधी बातें न कहने
लगे। पर यहाँ वो बिना किसी झिझक के जो चाहे कर सकती थी, बोल
सकती थी। सामने खड़ा लड़का न उसके बारे में कुछ उल्टा-सीधा सोचेगा, और न किसी को जाकर बोलेगा। ऐसा उसका सिक्स्थ सैन्स कह रहा था।
कृति एक-एक करके सारे पन्ने पलटे जा रही थी। अंदर की तस्वीरें बहुत सुंदर थीं।
‘तुम
चाहो तो घर ले जाओ। मेरी कल शाम में ट्रेन है। कल दोपहर तक वापस कर देना।‘
‘मुझे
अपने घर से भगा रहे हो?’ कृति ने शरारत से कहा।
‘अरे, ऐसा नहीं है।‘
‘कोई
गर्लफ्रेंड आने वाली है?’
‘हाँ, आने वाली तो है। पर शाम में। अभी 4-5 घंटे हैं।‘
अब तक कृति अपने-आपको बुरी नीयत वाले लड़कों से बचाती थी। पर आज लग रहा था कि
वो बुरी नीयत वाली लड़की बन गई है, और विक्रांत को अपने-आपको उससे बचाना होगा। उसके हाथ हौले से
विक्रांत की बांह को छूने लगे। विक्रांत अपनी जगह से हिला नहीं। कृति का अपना हाथ
वहाँ से हटाने का मक़सद नहीं था। उसका शरीर हल्का सा अकड़ गया था। सांसें थोड़ी तेज़ हो गईं
थीं। वो अपनी नज़रें किताब के पन्नों से हटा नहीं पा रही थी,
हालांकि मन तो बहुत था कि देखे विक्रांत की आँखें क्या कह रही हैं।
अंदर की एक झिझक उसे रोक रही थी। नहीं तो उसका बस चलता तो आज वो विक्रांत का
रेप कर डालती। उसे पता नहीं था कि उसके अंदर ऐसी भी ख्वाहिशें मौजूद हैं। वो तो बस
प्रार्थना कर रही थी कि विक्रांत अगला कदम उठाए। सिर्फ एक स्पर्श से वो अंदर ही
अंदर उबलने लगी थी।
विक्रांत ने ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराया। एक अनुभवी खिलाड़ी के साथ वक़्त बिताने
का यही फायदा है। वो कृति के पीछे जाकर खड़ा हो गया। उसने हल्के से उसके लटकते
बालों को दायें हाथ से कंधे की ओर सरकाया और अपने होठों को कृति की गर्दन के पीछे
वाले हिस्से के पास ले गया। उसकी गरम सांसें जैसे ही गर्दन से टकराईं, कृति सिहर गई। वो इंतज़ार करने लगी
कि अब विक्रांत क्या करता है।
विक्रांत के अपने होठों को अपनी जीभ से गीला किया और एक हल्का सा चुंबन कृति
की गर्दन के पीछे जड़ दिया। कृति को लगा जैसे किसी ने बारूद के पलीते को चिनगारी
दिखा दी है। उसके बाद विक्रांत ने मखमल जैसे मुलायम चुंबनों से कृति की गर्दन का
एक-एक हिस्सा भर दिया। कृति अपनी आँखें बंद करके पूरे ध्यान से एक-एक चुंबन को
महसूस कर रही थी। मन में कोई विचार नहीं था। विचार आनंद में बाधा न बन जाएँ, कृति को इस बात का डर था।
चुंबन करते समय बीच-बीच में रुककर विक्रांत कृति की गर्दन को सूंघने लगता था।
सूंघते-सूंघते अपने दांतों से हल्के-हल्के काटने लगता था जैसे दांतों की नोंक से
उसकी त्वचा को खुरचकर अलग कर देना चाहता हो। फिर जीभ से छुरे की नोंक की तरह उसकी
गर्दन पर हजारों निशान बनाने की कोशिश करता था।
कृति का शरीर ऐसी हरकतें करने लगा मानो एक बोरे में किसी शेर को बांध दिया गया
हो और वो छटपटाकर बाहर निकलने की पुरजोर कोशिश कर रहा हो। मिनट दो मिनट में कृति
के सब्र का बांध टूट गया, उसके अंदर की झिझक न जाने कहाँ गायब हो गई, और वो पीछे मुड़ी।
फिर तो वह विक्रांत पर झपट पड़ी। उसने विक्रांत के होठों को अपने होठों से खोला
और उसे अपनी जीभ से भर दिया। उसकी जीभ विक्रांत के हलक को ऐसे टटोलने लगी जैसे कोई
बिल्ली सुरंग में घुसना चाह रही हो।
उसे विक्रांत के मुंह का स्वाद बहुत पसंद आ रहा था। उसकी जीभ उस स्वाद का कोई
भी कतरा छोडना नहीं चाहती थी। उसने अपने दोनों हाथों से विक्रांत की बाहों को जकड़
रखा था ताकि विक्रांत उसकी पकड़ से नहीं छोत न जाये और उसे जन्नत से बेदखल न कर दे।
लेकिन विक्रांत का ऐसा कोई इरादा नहीं था। उसे बारूद के पलीते में चिनगारी
दिखाना आता था। साथ ही उसे बारूदखाने के हर हिस्से की भी जानकारी थी। उसने कृति का
कुर्ता पीछे से उठाया, बाएँ हाथ से उसके नितंब के एक गाल को पकड़ा ताकि वो ज़्यादा हिल
न पाये, फिर दायें हाथ की उँगलियों की नोंक से से नितंबों के
बीच की दरार को ऊपर-नीचे रगड़ने लगा। फिर दरार के बीच की नन्ही सुरंग में अपनी एक
अंगुली चुभोने लगा।
कृति ने विक्रांत को बिस्तर पर धकेलकर गिरा दिया, और उसे ज़्यादा ज़ोर से चूमने लगी। उसका
बस चलता तो विक्रांत को खा जाती। चूमने के साथ-साथ वो अपने गुलाब को विक्रांत के दंड
पर रगड़ने लगी।
आज वो मूड में थी। उसे लग रहा था वो एक शेरनी है जिसने हिरण के बच्चे को दबोच रखा
है। तभी उसका मोबाइल बज उठा। वो मोबाइल के साइलेंट करने वाली थी कि उसने देखा कि सुरंजना
का फोन है। ‘ओह गॉड!
उसे तो अभी डिपार्टमेंट जाना है। सर्टिफिकेट लेने। अगर अभी नहीं गयी तो फिर पाँच दिनों
का इंतज़ार करना होगा। फिर तो सारा प्रोग्राम ही चौपट हो जाएगा।‘
वो बेमन से उठी, लेकिन
अभी भी विक्रांत को गिद्ध वाली नज़रों से देख रही थी। उसने कमीनी मुस्कान चेहरे पर लाकर
कहा, ‘मुझे जाना होगा। आज तुम बच गए।‘
विक्रांत ने कहा, ‘मैं इसके लिए तुमको और भगवान को माफ.....कभी नहीं करूंगा।‘
हल्के से हँसते हुये कृति ने कहा, ‘मैं तुमसे काफी देर से मिली। पहले मिलती
तो तुम्हारा दर्जनों बार रेप कर चुकी होती।‘ वो अपने कपड़ों को
ठीक करने लगी।
विक्रांत के फ्लॅट से निकलते समय कृति की मुस्कुराहट रुक नहीं रही थी। ये पहली
बार हुआ था कि उसने किसी को सही मायने में चूमा था। भगवान विक्रांत जैसे लड़कों को इतनी
कम संख्या में क्यों बनाता है और उसके बोयफ्रेंड जैसे लड़कों को थोक के भाव क्यों बनाता
है! यही सवाल उसके मन में घुमड़ रहा था।
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